भारत के लिए रविवार को दिन बेहद खास रहा, जहां शतरंज ओलंपियाड में भारतीय पुरुष टीम और महिला टीम ने गोल्ड मेडल जीतकर इतिहास रच दिया। भारत की इन दोनों ही टीमों ने पहली बार गोल्ड मेडल जीता। पुरुष और महिला टीमों ने टॉप पर रहते हुए चैंपियन बनने का गौरव हासिल किया। बुडापेस्ट में आयोजित 45वें शतरंज ओलंपियाड में भारतीय खिलाडिय़ों ने अंतिम दौर में अपने अपने प्रतिद्वंद्वियों को हराकर इस प्रतियोगिता में पहली बार अपना नाम इतिहास में दर्ज करा दिया है। हालांकि, जब भी चेस का नाम आता है तो हर भारतीय की जुंबा पर विश्वानाथन आनंद का नाम आता है। आनंद पांच बार के वल्र्ड चैंपियन रह चुके हैं, लेकिन आनंद से पहले भी भारत के पास एक चेस खिलाड़ी था जिसने चेस की दुनिया में खूब नाम कमाया था। वो थे मोहम्मद रफीक खान।
1980 में शतरंज ओलंपियाड में सिल्वर मेडल जीतकर मोहम्मद रफीक ने पूरी दुनिया में अपना और अपने देश का नाम रौशन किया। उस दौरान माल्टा में हुए टूर्नामेंट में भारत के लिए मेडल जीतने वाले खिलाड़ी बने थे। रफीक ने 13 में से कुल 9 मुकाबले अपने नाम किए थे जबकि 2 मैच ड्रॉ रहे थे। हालांकि, वो कभी भी अपने करियर में कभी ग्रैंडमास्टर नहीं बन सके। 1976 में, रफीक भारतीय शतरंज में चर्चा का विषय बन गए थे, क्योंकि उन्होंने नेशनल बी के लिए चैंपियनशिप जीती थी। उस टूर्नामेंट में खान ने 11 गेम जीते थे
हालांकि, उसी साल 1976 की नेशनल ए चैंपियनशिप में रफीक खान ने कुछ खास प्रदर्शन नहीं किया और वह टूर्नामेंट से बाहर हो गए थे। बता दें कि, रफीक एक कारपेंटर के बेटे थे और उन्होंने कोई हाई एजुकेशन नहीं ली थी। अपनी खुद के खर्चों को चलाने के लिए वह बाद में खुद भी कारपेंटर बन गए थे। शतरंज के खेलने उन्हें अपनी ओर आकर्षित किया और उन्होंने इस खेलना शुरू कर दिया। रफीक आगे चलकर भारत के लिए पहले ओलंपियाड चेस मेडल विजेता थे। लेकिन 19 जुलाई 2019 के दिन रफीक ने 73 वर्ष की आयु में आखरी सांस ली थी।