रुद्रपुर। उत्तराखंड राइस मिलर्स एसोसिएशन के पदाधिकारी अब अपनी समस्याओं को लेकर खुलकर सामने आ गए हैं। एसोसिएशन के प्रतिनिधिमंडल ने कलक्ट्रेट परिसर में जिलाधिकारी नितिन सिंह भदौरिया के माध्यम से मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को एक विस्तारपूर्वक ज्ञापन सौंपा। इसमें राइस मिलर्स की वर्षों से चली आ रही जमीनी परेशानियों को प्रमुखता से उजागर किया गया।
प्रदेश अध्यक्ष नरेश कंसल ने बताया कि एफसीआई व स्टेटपूल के गोदामों में जगह न होने के चलते अक्टूबर 2024 से मिलर्स के चावल का उठान नहीं हो पा रहा है। समय पर चावल जमा न होने के कारण धान के भुगतान अटक गए हैं, जिससे मिलर्स आर्थिक संकट से जूझ रहे हैं। छोटे और मंझोले मिलर्स तो कर्ज में डूबने की कगार पर पहुंच गए हैं।
इसके साथ ही मंडी शुल्क में भी भेदभाव की बात सामने आई है। मिलर्स से 2.5 प्रतिशत शुल्क वसूला जा रहा है, जबकि वापसी केवल 2 प्रतिशत की जा रही है। वहीं, धान की कुटाई के बदले महज ₹10 प्रति कुंटल का भुगतान मिल रहा है, जो लागत से कहीं कम है।
सबसे बड़ी नाराजगी विभाग की उदासीनता को लेकर है। वर्ष 2022-23 और 2023-24 के धान परिवहन बिलों का भुगतान अभी तक लंबित है। जबकि परिवहन दरों में बीते तीन वर्षों से कोई संशोधन नहीं हुआ है। मिलर्स का कहना है कि खाद्य आपूर्ति ठेकेदारों को जहां ऊंची दरों पर भुगतान हो रहा है, वहीं मिलर्स को नजरअंदाज किया जा रहा है। यह स्पष्ट दोहरा मापदंड है। ज्ञापन में चेतावनी भी दी गई कि अगर सरकार ने आगामी धान खरीद नीति को पंजाब, हरियाणा और यूपी जैसी राज्यों की तर्ज पर पारदर्शी और लाभकारी नहीं बनाया, तो मिलर्स कच्चा आढ़ती कार्य करने को मजबूर नहीं होंगे। इस मौके पर प्रदेश अध्यक्ष नरेश कंसल के साथ उपाध्यक्ष रमेश गर्ग, कोषाध्यक्ष पंकज बांगा, महामंत्री श्याम अग्रवाल और मंत्री उमेश अग्रवाल सहित कई मिलर्स मौजूद रहे।
अब देखना यह होगा कि सरकार इन मांगों पर कितना और कब तक अमल करती है, या फिर मिलर्स की आवाज एक बार फिर फाइलों में दफ्न होकर रह जाएगी।
