
न्यूज प्रिंट रुद्रपुर। राष्ट्रीय कुमाऊँनी भाषा सम्मेलन 2025 इस बार केवल भाषा, साहित्य और संस्कृति तक सीमित नहीं रहा — यह मानवीय संवेदनाओं, जीवनदायिनी सोच और सामाजिक उत्तरदायित्व का भी उत्सव बन गया। सम्मेलन के मंच पर जब नेत्रदान संगठन रुद्रपुर को उत्कृष्ट सामाजिक योगदान के लिए सम्मानित किया गया, तो यह संदेश स्पष्ट था कि कुमाऊँनी अस्मिता केवल बोली तक सीमित नहीं, बल्कि सेवा, करुणा और समर्पण की भावना से भी गहराई से जुड़ी है। नेत्रदान केंद्र रुद्रपुर को मिला विशेष सम्मान सम्मेलन के दौरान डॉ. एल.एम. उप्रेती, डॉ. दीपक भट्ट, हेम पंत और विक्की पाठक जैसे सेवाभावी कार्यकर्ताओं को सम्मानित किया गया, जिन्होंने नेत्रदान केंद्र रुद्रपुर को क्षेत्र में एक आदर्श सामाजिक संस्था के रूप में स्थापित किया है। पूर्व स्वास्थ्य निदेशक एवं वर्तमान में नेत्रदान केंद्र के निदेशक डॉ. एल.एम. उप्रेती ने अपने उद्बोधन में कहा — अंगदान से कोई मरता नहीं, बल्कि किसी दूसरे को जीने की नई रोशनी मिलती है।”

उनका यह संदेश सभागार में उपस्थित शिक्षाविदों, साहित्यकारों और विद्यार्थियों के हृदयों तक पहुँचा। उनके सजीव उदाहरणों ने यह एहसास कराया कि किसी भी समाज की सच्ची प्रगति केवल ज्ञान या भाषा संरक्षण में नहीं, बल्कि मानवता के उत्थान में निहित है। भाषा, संस्कृति और सेवा का समन्वय यह सम्मेलन इस मायने में विशेष रहा कि जहाँ एक ओर कुमाऊँनी भाषा को पाठ्यक्रम और राजभाषा दर्जे की दिशा में ठोस विमर्श हुआ, वहीं दूसरी ओर नेत्रदान जैसे जनकल्याणकारी कार्य को भी प्रतिष्ठा दी गई। यह एक प्रेरक संयोग था — जब भाषा-संरक्षण के मंच से जीवन-संरक्षण का संदेश दिया गया। डॉ. उप्रेती ने कहा कि मातृभाषा की आत्मा केवल शब्दों में नहीं, बल्कि करुणा, सेवा और सह-अस्तित्व की भावना में बसती है। “अंधकार से प्रकाश” की राह पर समाज आज जब समाज भौतिकता की दौड़ में संवेदनाओं से दूर होता जा रहा है, तब ऐसे आयोजन समाज को नई दिशा देते हैं। नेत्रदान केंद्र रुद्रपुर का कार्य वास्तव में कुमाऊँ की उसी मानवीय परंपरा को आगे बढ़ा रहा है, जहाँ दूसरों के लिए जीना ही सबसे बड़ी साधना मानी गई है।
कुमाऊँनी भाषा सम्मेलन में यह दृश्य दिल को छू गया — जब संस्कृति, सेवा और संवेदना एक साथ खड़ी थीं। यह सम्मान केवल एक संस्था का गौरव नहीं, बल्कि पूरे समाज की सोच में सकारात्मक परिवर्तन का प्रतीक बन गया।


