न्यूज़ प्रिंट रुद्रपुर। एक मजबूत लोकतंत्र के लिये मतदाताओं का मतदान में बढ़ चढ़कर हिस्सा लेना बेहद जरूरी है लेकिन इस बार जनता के बीच का सन्नाटा, वोटिंग प्रतिशत के कम होने की आशंका को व्यक्त कर रहा है। ऐसा होने से रोकने के लिये जि मेदारों के सामने मतदाताओं को मतदान केन्द्रों तक लाना ही सबसे बड़ी चुनौती होगी। इस चुनौती से पार पाने के लिये सरकारी तंत्र से लेकर राजनीतिक पार्टियों के जि मेदार भी उतने गंभीर नहीं दिख रहे हैं। उत्तराखंड की पांच सीटों में से नैनीताल-उधम सिंह नगर लोकसभा सीट पर दूसरे सबसे अधिक मतदाता हैं। इस सीट पर 20,15,801मतदाता हैं, जिनमें 1,68,636 महिलाएं तो 10.47,118 पुरुष व 55 ट्रांसजेंडर शामिल हैं। यहां मतदाताओं की सं या भले ज्यादा हो लेकिन चुनावी महापर्व में हिस्सा लेने वालों के बीच सन्नाटा दिख रहा है। इस सन्नाटे का कारण राजनीतिक पार्टियों का चुनावी प्रचार के दौरान कम जोश दिखना भी है। पूरे चुनावी प्रचार के दौरान कहीं भी वो बात नहीं दिखी जो पिछले चुनाव के दौरान देखी जाती रही है। न नेताओं में उत्साह नजर आया, न कार्यकर्ताओं में जोश। दोनों दल बस चुनावी औपचारिकता निभाते नजर आये। भाजपा में जहां बैठकों की रस्म अदायगी चलती रही तो कांग्रेस विधानसभावार कार्यकर्ताओं को एकजुट करने में ही लगी रही। पिछले चुनावों में कभी भी ऐसा माहौल देखने को नहीं मिला। खासकर लोकसभा चुनाव में तो कतई नहीं। इस तरह का सन्नाटा सबको हैरत में डाल रहा है। तो क्या ये सन्नाटा तयशुदा हो चुके चुनावी परिणाम के कारण पसरा हुआ है? इस सवाल का मुक मल जवाब तो मत पेटियों के खुलने के बाद ही पता चलेगा, लेकिन जानकारों की मानें तो ये ही एकमात्र कारण है जो दोनों दलों में चुनावी गर्मी पैदा करने में आड़े आता रहा। भाजपा में जहां मुकाबला वोटिंग के पहले ही जीता हुआ माना जा रहा है तो कांग्रेस में भी चमत्कार की उ मीदें लगभग शून्य ही हैं। ये हालात कांग्रेस की स्थानीय दुर्दशा के कारण निर्मित हुए हैं। कांगे्रस पार्टी का कैंडिडेट जरूर युवा व मुखर है, लेकिन उस पर भी अपने ही दल के लोगों को एकजुट करने का भार अधिक रहा। लिहाजा जनता से संवाद स्थापित करने में वह पिछड़ गये। उधर, जोश और जुनून का नितांत अभाव तो भाजपा में भी नजर आया। लेकिन उनके कार्यकर्ताओं के बीच जीत तय मानी जा रही है। लिहाजा पार्टीकेडर में वो जुनून नजर नहीं आया, जिसकी उ मीद की जा रही थी। ऐसे में मतदाताओं के बीच भी चुनाव को लेकर जोश कम ही दिख रहा है। जो मजबूत लोकतंत्र के लिये खतरे की घंटी से कम नहीं है।