नई दिल्ली। इस वर्ष की वार्षिक अमरनाथ यात्रा रविवार को समय से पहले स्थगित कर दी गई है। यात्रा का समापन 9 अगस्त को रक्षाबंधन के दिन होना था, लेकिन लगातार खराब मौसम और मार्गों की स्थिति को देखते हुए इसे एक सप्ताह पूर्व ही रोकने का निर्णय लिया गया।
तीन दिन पहले से भारी बारिश के कारण यात्रा अस्थायी रूप से रोक दी गई थी। अब प्रशासन ने बालटाल और पहलगाम मार्गों की गंभीर स्थिति को देखते हुए यात्रा को पूरी तरह से बंद करने की घोषणा कर दी है।
संभागीय आयुक्त विजय कुमार बिधूड़ी ने बताया कि हाल की बारिश के चलते कई रास्ते खस्ताहाल हो गए हैं और तत्काल मरम्मत व सुरक्षा के बिना यात्रा जारी रखना संभव नहीं है। उनके अनुसार मरम्मत कार्यों के दौरान मशीनरी और स्टाफ की तैनाती भी जोखिमपूर्ण हो सकती है।
हालांकि यात्रा समय से पहले बंद कर दी गई, श्री अमरनाथ श्राइन बोर्ड के अनुसार इस वर्ष अब तक लगभग चार लाख तीर्थयात्री गुफा मंदिर के दर्शन कर चुके हैं।
पिछले सप्ताह से यात्रा में तीर्थयात्रियों की संख्या में गिरावट दर्ज की गई थी, जो मौसम के साथ-साथ सुरक्षा कारणों से भी जुड़ी रही। 22 अप्रैल को पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद सरकार ने इस वर्ष की यात्रा के लिए 600 अतिरिक्त अर्धसैनिक बलों की कंपनियाँ तैनात की थीं, जिससे यह यात्रा देश के सबसे अधिक सुरक्षा वाले धार्मिक आयोजनों में शामिल हो गई थी।
यात्रियों के काफिलों को जम्मू से बालटाल व पहलगाम के आधार शिविरों तक कड़ी निगरानी में लाया जा रहा था और श्रीनगर-जम्मू हाईवे पर काफिले गुजरते समय आम लोगों की आवाजाही भी प्रतिबंधित कर दी जाती थी।
इतिहास से जुड़ी पृष्ठभूमि की बात करें तो अमरनाथ यात्रा की शुरुआत 1850 के दशक में मानी जाती है, जब एक मुस्लिम चरवाहे बोटा मलिक ने इस पवित्र गुफा की खोज की थी। वर्षों तक उनके परिवार ने यात्रा के संचालन की ज़िम्मेदारी निभाई, जिसे 2005 में श्री अमरनाथ श्राइन बोर्ड ने अपने हाथ में ले लिया।
हालाँकि स्थानीय समुदाय और तीर्थयात्रियों के बीच संपर्क पहले जैसा नहीं रहा है। सुरक्षा घेरे में सीमित तीर्थयात्रा के कारण अब केवल कुछ स्थानीय, जैसे टट्टूवाले और पालकी उठाने वाले ही श्रद्धालुओं के साथ जुड़ाव बनाए रखे हैं।
इस तरह, यह यात्रा जहां धार्मिक आस्था का प्रतीक है, वहीं बदलते हालातों और चुनौतियों के कारण प्रशासन के लिए एक संवेदनशील और जटिल दायित्व भी बन गई है।
