देहरादून। उत्तराखण्ड आयुर्वेद विश्वविद्यालय की शैक्षणिक उदासीनता और प्रशासनिक लापरवाही के चलते आयुर्वेद, यूनानी और होम्योपैथिक पाठ्यक्रमों में अध्ययनरत हजारों छात्रों का भविष्य आज गहरे संकट में फंसा हुआ है। विश्वविद्यालय की ओर से समय पर परीक्षाएँ न कराना और घोषित परीक्षाओं के परिणामों को महीनों तक रोके रखना छात्रों की शिक्षा, करियर और मानसिक स्वास्थ्य—तीनों पर बुरा असर डाल रहा है। विशेषकर राज्य के एकमात्र चंदोला होम्योपैथिक मेडिकल कॉलेज के छात्रों को गंभीर कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है। कॉलेज के प्राचार्य प्रोफेसर अजय विश्वकर्मा ने इस गंभीर स्थिति पर चिंता जताते हुए विश्वविद्यालय के कुलपति को एक विस्तृत पत्र लिखा है। उन्होंने पत्र में स्पष्ट किया है कि यदि समय रहते कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया, तो इसके परिणाम गंभीर हो सकते हैं।
परीक्षा परिणाम में भारी देरी
शैक्षणिक सत्र 2019-20 के तृतीय वर्ष के छात्रों ने अप्रैल 2024 में परीक्षाएं दी थीं, लेकिन मई 2025 तक उनके परिणाम घोषित नहीं किए गए हैं। राष्ट्रीय होम्योपैथी आयोग द्वारा दो बार विश्वविद्यालय को निर्देश जारी किए गए हैं, फिर भी निष्क्रियता बनी हुई है। इससे छात्रों में गहरी निराशा और चिंता का माहौल है।
पूर्व छात्रों का भी परिणाम अधूरा
2018-19 सत्र की चतुर्थ BHMS परीक्षा में सम्मिलित हुए 44 छात्रों में से दो छात्रों के परिणाम अब तक विश्वविद्यालय द्वारा जारी नहीं किए गए हैं। इससे न केवल इन छात्रों का भविष्य अधर में है, बल्कि संस्थान की भी प्रतिष्ठा प्रभावित हो रही है।
प्रथम और द्वितीय वर्ष की परीक्षा भी लटकी
2022-23 की प्रथम BHMS की कक्षाएं अप्रैल 2023 में प्रारंभ हुई थीं और अक्टूबर 2024 तक 18 माह की अवधि पूर्ण हो चुकी है, लेकिन परीक्षा की कोई सूचना नहीं है। इसी प्रकार 2021-22 के द्वितीय वर्ष की परीक्षा भी 24 माह से विलंबित है। यह स्थिति विश्वविद्यालय की अकादमिक व्यवस्था की बदहाली को दर्शाती है
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इंटर्नशिप सत्यापन लंबित, भविष्य अधर में
कॉलेज प्रशासन ने विश्वविद्यालय को जनवरी और मार्च 2025 में ही इंटर्नशिप पूर्ण छात्रों का विवरण भेजा था, लेकिन AYUSH पोर्टल पर अब तक सत्यापन नहीं किया गया है। इससे छात्र AIAPGET, राज्य चिकित्सा परिषदों में पंजीकरण और रूष्ठ पाठ्यक्रमों में प्रवेश जैसे महत्वपूर्ण अवसरों से वंचित हो रहे हैं।
राज्य चिकित्सा बोर्डों से आए सत्यापन अनुरोध भी लंबित
कई छात्रों को उनकी उपाधियाँ मिल चुकी हैं, लेकिन विभिन्न राज्य चिकित्सा बोर्डों द्वारा भेजे गए सत्यापन अनुरोधों का उत्तर विश्वविद्यालय नहीं दे रहा है। यह सीधे तौर पर छात्रों के करियर को बाधित कर रहा है।
छात्रों का फूटा गुस्सा, हाई कोर्ट की शरण में पहुंचे
विश्वविद्यालय की इस घोर लापरवाही से नाराज़ छात्रों ने बीते दिनों हर्रावाला स्थित विश्वविद्यालय कार्यालय में जोरदार प्रदर्शन किया और रजिस्ट्रार रामजी शरण सहित जिम्मेदार अधिकारियों पर गंभीर आरोप लगाए। अब छात्रों और निजी आयुष कॉलेज प्रबंधन ने उत्तराखण्ड उच्च न्यायालय में याचिका दायर कर न्याय की गुहार लगाई है।
क्या कहता है कानून?
राष्ट्रीय होम्योपैथी आयोग अधिनियम, 2020 के अनुसार इंटर्नशिप पूर्ण करने के बाद ही छात्रों की उपाधि मान्य होती है। इसके बाद ही वे प्रैक्टिस, AIAPGET, और अन्य परीक्षाओं में भाग लेने या उच्च शिक्षा में प्रवेश के योग्य होते हैं। विश्वविद्यालय की निष्क्रियता इस कानूनी प्रक्रिया में भी बाधा बन रही है।
अब सवाल उठता है:
क्यों नहीं हो रही समय पर परीक्षाएं?
क्यों लटक रहे हैं महीनों से परीक्षा परिणाम?
क्यों नहीं हो रहा छात्रों का वेरिफिकेशन?
आखिर किसकी जिम्मेदारी है यह सब?
छात्रों, अभिभावकों और संस्थानों की उम्मीदें अब न्यायालय से जुड़ी हैं। देखना यह होगा कि हाई कोर्ट इस पूरे मामले में किस प्रकार का निर्णय देता है और क्या उत्तराखण्ड आयुर्वेद विश्वविद्यालय को जगाने के लिए न्यायिक डंडा जरूरी हो गया है?

