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Thursday, July 17, 2025

गंगवार बनाम मंत्री: तराई में अकेले पड़ते गंगवार परिवार को संगठन ने भी ठंडे बस्ते में डाला

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रुद्रपुर (शिवम शर्मा)। ऊधमसिंह नगर में जिला पंचायत की राजनीति इन दिनों एक तीखी रस्साकशी से गुजर रही है एक ओर हैं वर्षों से जिला पंचायत पर दबदबा बनाए बैठा गंगवार परिवार और दूसरी ओर प्रदेश सरकार के एक प्रभावशाली कैबिनेट मंत्री, जिनकी नाराजगी गंगवार परिवार को भारी पड़ सकती है। यह टकराव कोई नया नहीं, लेकिन इस बार पार्टी के भीतर ही गंगवार परिवार के लिए जमीन खिसकती नजर आ रही है।

सूत्रों की मानें तो मंत्री और गंगवार परिवार के बीच जिला पंचायत की योजनाओं, बजट आवंटन सहित मंत्री की विधानसभा सीट से गंगवार परिवार के चुनाव लड़ने को लेकर लंबे समय से टकराव चल रहा था, जो अब निर्णायक मोड़ पर पहुंच चुका है।

लेकिन यह सिर्फ मंत्री और गंगवार परिवार की खींचतान तक सीमित नहीं है। विश्वस्त सूत्रों का दावा है कि तराई क्षेत्र में भाजपा के कई प्रभावशाली नेता जिनमें मौजूदा और एक पूर्व विधायक शामिल हैं ने भी गंगवार परिवार से दूरी बना ली है। इन दोनों विधायकों ने हाल के दिनों में सार्वजनिक रूप से भले चुप्पी साधी हो, लेकिन संगठनात्मक बैठकों और अंदरूनी रणनीति सत्रों में वे स्पष्ट रूप से गंगवार परिवार की ख़िलाफ़त की है।

सूत्र बताते हैं कि इन नेताओं ने नेतृत्व को यह फीडबैक दिया है कि गंगवार परिवार अब जनता और कार्यकर्ताओं से कट चुका है, और यदि संगठन को जमीनी स्तर पर दोबारा ताकतवर बनाना है, तो यह ‘एक परिवार की राजनीति’ से बाहर निकलने का सबसे उचित समय है।

इस घटनाक्रम ने गंगवार परिवार को तराई की राजनीति में लगभग अकेला छोड़ दिया है। जिन पदों और प्रभाव के सहारे वे अब तक अपनी राजनीतिक पकड़ बनाए हुए थे, वही अब उनके खिलाफ सशक्त मोर्चा बनाते नजर आ रहे हैं।

संगठन के भीतर यह धारणा भी तेजी से बनी है कि गंगवार परिवार अपने प्रभाव क्षेत्र को ‘व्यक्तिगत सत्ता केंद्र’ की तरह चला रहा है।

यह सारा घटनाक्रम न केवल ऊधमसिंह नगर की सियासत को प्रभावित कर रहा है, बल्कि यह संकेत भी दे रहा है कि पार्टी ने अब पुराने राजनीतिक ‘गढ़ों’ में भी सर्जनात्मक असंतुलन को स्वीकार करना शुरू कर दिया है। गंगवार परिवार के लिए यह स्थिति दोहरी चुनौती बन गई है एक ओर संगठन का भरोसा खोना, दूसरी ओर क्षेत्रीय बड़े नेताओं और मंत्री खेमे की खुली नाराजगी। अब उनकी राजनीतिक प्रासंगिकता का दारोमदार केवल उनके जनाधार पर नहीं, बल्कि इस बात पर भी है कि वे संगठन से संवाद फिर से कायम कर पाते हैं या नहीं।

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