रुद्रपुर(शिवम शर्मा)। ऊधमसिंह नगर की जिला पंचायत राजनीति में कभी सबसे प्रभावशाली माने जाने वाले गंगवार परिवार की सियासी नींव अब दरकती नजर आ रही है। भाजपा द्वारा जिला पंचायत चुनाव 2025 के लिए जारी पहली सूची में भंगा (वार्ड संख्या 17) सीट को स्वतंत्र घोषित करना इस बात का साफ संकेत है कि पार्टी अब इस ‘पुराने प्रभावशाली परिवार’ की पकड़ को चुनौती देने के लिए तैयार है।
यह वही सीट है, जहां से वर्तमान में रेनू गंगवार जिला पंचायत अध्यक्ष हैं, और उनके परिवार का इस सीट पर वर्षों से एकतरफा दबदबा रहा है। लेकिन इस बार भाजपा ने उन्हें दोबारा मौका देना तो दूर, सीट पर किसी को समर्थन न देकर अप्रत्यक्ष रूप से उन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया है।
गंगवार परिवार की यह राजनीतिक अनदेखी अचानक नहीं आई है। पिछले कुछ चुनावों में उनके बढ़ते राजनीतिक अहंकार, संगठन से दूरी और कार्यकर्ताओं के साथ कथित तानाशाही व्यवहार को लेकर लगातार नाराजगी रही है। पार्टी के भीतर भी यह आवाज़ तेज हो चली थी कि गंगवार परिवार अब संगठन के नियंत्रण से बाहर हो चुका है और इसे रोकना जरूरी है।
भंगा सीट को लेकर भाजपा की दुविधा केवल आंतरिक नहीं थी। सूत्रों की मानें तो इस सीट पर जातीय समीकरण और मुस्लिम मतदाताओं की बड़ी संख्या के चलते पार्टी किसी एक पक्ष में खुलकर खड़ा होने से बचना चाहती थी। माना जा रहा है कि यहां एक मजबूत मुस्लिम प्रत्याशी के मैदान में उतरने की संभावना ने भाजपा को सोचने पर मजबूर किया, क्योंकि गंगवार परिवार की पकड़ धीरे-धीरे कमजोर होती दिख रही थी।
भाजपा ने गंगवार परिवार को टिकट न देकर न केवल संगठनात्मक अनुशासन का संदेश दिया है, बल्कि यह भी दिखा दिया है कि अब पार्टी निजी गढ़ों और वर्चस्व के युग से बाहर निकल रही है। सूची में शामिल नए चेहरे — कुरैया से कोमल चौधरी, गंगी से हेमा मुडेला, पछैनिया से संगीता राणा, और मझोला-1 से अजय मोर्य यह दर्शाते हैं कि पार्टी अब जमीन से जुड़े नए नेतृत्व को तरजीह देना चाहती है।
भंगा सीट को स्वतंत्र घोषित करना एक रणनीतिक चतुराई भी है। भाजपा ने न तो पूरी तरह दरवाज़ा बंद किया और न ही समर्थन देकर खुलकर पक्ष लिया। यह कदम पार्टी को यह मौका देता है कि यदि गंगवार परिवार वाकई जनाधार साबित करता है, तो भविष्य में संवाद की टेबल पर वापसी संभव हो सके।
लेकिन इस बार के घटनाक्रम से एक बात साफ हो गई है गंगवार परिवार अब ‘अजेय’ नहीं रहा। उनके खिलाफ स्थानीय स्तर पर उभरी नाराजगी, जातीय असंतुलन और संगठन से उनकी दूरी अब खुलकर सामने आ चुकी है। पार्टी के अंदरूनी हलकों में यह भी कहा जा रहा है कि अगर गंगवार समर्थकों ने निर्दलीय रास्ता चुना, तो इससे भाजपा को नुकसान तो होगा, लेकिन यह परिवार के लिए भी एक आखिरी दांव जैसा होगा।
जिला पंचायत की राजनीति में जिस परिवार की तूती बोलती थी, वह आज पार्टी की सूची से बाहर होकर अपने ही गढ़ में असहज और हाशिए पर खड़ा दिख रहा है। भाजपा का यह कदम केवल एक टिकट काटने का फैसला नहीं, बल्कि एक ‘सियासी शिफ्ट’ का प्रतीक है जिसमें संगठन के सिद्धांत और जनता से जुड़ाव को तवज्जो दी जा रही है।