शिमला पिस्तौर और सतुइया सीटें बनेगी सियासी अखाड़ा, पुराने चुनावी घाव भरने नहीं, गहरा करने की हो रही तैयारी
रुद्रपुर। उधमसिंह नगर जनपद में रुद्रपुर ब्लॉक प्रमुख पद को लेकर राजनीतिक सरगर्मी तेज होती जा रही है। इस बार का मुकाबला सामान्य चुनाव से कहीं अधिक व्यापक बनता नजर आ रहा है। यह चुनाव महज सत्ता की कुर्सी हासिल करने तक सीमित नहीं रह गया है, बल्कि इसे आत्म-सम्मान, राजनीतिक विरासत और पिछले चुनावों में मिली हार-जीत की पुनर्पाठ की तरह देखा जा रहा है। सबसे अधिक चर्चा में शिमला पिस्तौर और सतुइया सीटें हैं। दोनों ही सीटों पर जल्होत्रा परिवार पूरी ताकत से उतरने की तैयारी में है। विश्वसनीय सूत्रों के अनुसार, शिमला पिस्तौर से विपिन जल्होत्रा और सतुइया से उनके भाई, जिनका नाम भी संयोगवश विपिन जल्होत्रा ही है, चुनाव लड़ने की रणनीति बना चुके हैं। इससे यह स्पष्ट हो गया है कि परिवार पंचायत राजनीति से आगे बढ़कर क्षेत्रीय नेतृत्व को सशक्त करने की दिशा में सक्रिय हो चुका है। हालांकि मुकाबला केवल एकतरफा नहीं होगा। सतुइया सीट पर पूर्व विधायक के परिवार से एक प्रत्याशी के उतरने की चर्चाएं हैं, जिसने मुकाबले को पूरी तरह जटिल और प्रतिष्ठा का बना दिया है।
गौरतलब है कि 2022 के विधानसभा चुनाव में इस पूर्व विधायक को अप्रत्याशित पराजय का सामना करना पड़ा था, और राजनीतिक हलकों में इसकी पृष्ठभूमि में जल्होत्रा परिवार की भूमिका को लेकर भी अटकलें लगती रही हैं। अब जब दोनों ही परिवार एक बार फिर आमने-सामने खड़े हो रहे हैं, तो यह चुनाव पारंपरिक से अधिक मानसिक और रणनीतिक लड़ाई बन गया है। गांवों और वार्ड स्तर पर राजनीतिक गतिविधियां तेज हो चुकी हैं। बैठकों का दौर शुरू है, मतदाताओं से व्यक्तिगत संवाद साधे जा रहे हैं, और स्थानीय प्रभावशाली चेहरों को अपने पाले में लाने की कवायद जारी है।सियासी विश्लेषकों का मानना है कि यदि जल्होत्रा परिवार इन दोनों सीटों पर विजय दर्ज करता है, तो यह भविष्य में विधानसभा की राजनीति के लिए भी नई ज़मीन तैयार कर सकता है। वहीं अगर पूर्व विधायक परिवार वापसी करता है, तो यह राजनीतिक पुनर्वास की मिसाल होगी और यह दर्शाएगा कि जनता ने पूर्व की हार को एक क्षणिक असफलता मानते हुए फिर से भरोसा जताया है। वर्तमान में मतदाता खामोश हैं, लेकिन उनके रुझान को लेकर दोनों पक्षों में गहन मंथन चल रहा है। चुनावी बिसात पर अब हर चाल सूझ-बूझ से चली जा रही है। यह स्पष्ट होता जा रहा है कि ब्लॉक प्रमुख का यह चुनाव केवल एक पद की लड़ाई नहीं, बल्कि एक बड़े राजनीतिक संदेश का वाहक बन सकता है।