
न्यूज प्रिंट रुद्रपुर/उधम सिंह नगर:
धान के न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) और खरीद में बरती जा रही अनियमितताओं के खिलाफ किसान संगठनों ने आंदोलन तेज कर दिया है। मंगलवार को इन समस्याओं को केंद्र बिंदु बनाते हुए वरिष्ठ किसान नेता सुब्रत कुमार विश्वास के नेतृत्व में किसान प्रतिनिधिमंडल ने उपजिला अधिकारी मनीष बिष्ट के माध्यम से जिले के जिला अधिकारी को ज्ञापन प्रस्तुत किया। सुब्रत विश्वास मजदूर और किसान वर्ग के संघर्षों में हमेशा सबसे आगे रहे हैं तथा बुनियादी अधिकारों के लिए लगातार आवाज बुलंद करते आए हैं।धान खरीद की समस्याओं से आक्रोशित किसानधान की सरकारी खरीद प्रक्रिया में किसानों को कई स्तर पर दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। जिले के विभिन्न क्रय केंद्रों पर धान में नमी की आड़ में बार-बार तौल बंद कर दी जाती है और काफी किसानों को कम दाम पर ही धान बेचने को विवश होना पड़ता है। मंडियों में भीड़, समर्थन मूल्य से नीचे खरीद, व समय पर भुगतान न मिल पाने जैसी समस्याएं हालिया किसान आंदोलनों का कारण बनी हैं. किसान संगठनों ने यह भी आरोप लगाया कि कुछ दलाल किसानों की मजबूरी का फायदा उठा रहे हैं और औने-पौने दाम पर किसानों से धान खरीद रहे हैं। ज्ञापन में मुख्य रूप से सरकार से मांग की गई कि—धान की सरकारी खरीद न सिर्फ तेजी से हो, बल्कि पूरी पारदर्शिता से की जाए।किसानों को 72 घंटे के भीतर उनका पूरा वाजिब मूल्य मिलना सुनिश्चित किया जाए।नमी का बहाना बनाकर किसानों की फसल तौल से न रोकी जाए।यदि जिला प्रशासन ने मांगे नहीं मानीं तो आंदोलन और तेज किया जाएगा। किसान नेता सुब्रत विश्वास ने प्रशासन को चेताया कि किसान और मजदूर वर्ग की उपेक्षा बर्दाश्त नहीं की जाएगी और अगर समस्या का शीघ्र समाधान नहीं हुआ तो संघर्ष और व्यापक होगा।प्रशासन और किसान आमने-सामनेप्रशासन ने हाल ही में क्रय केंद्रों की संख्या बढ़ाए जाने, किसानों को डिजिटल प्लेटफॉर्म के जरिए भुगतान और तौल में पारदर्शिता की बात कही है। किसान संगठनों ने आंदोलन के माध्यम से समस्या के शीघ्र समाधान की मांग दोहराई है और प्रशासन को चेताया है कि जल्द व्यवस्था में सुधार न हुआ तो बड़ी संख्या में किसान सड़कों पर उतर सकते हैं ।उधम सिंह नगर में धान खरीद की अनियमितताओं के खिलाफ किसानों का आंदोलन ज़ोर पकड़ता जा रहा है। इस आंदोलन में सुब्रत विश्वास जैसे किसान नेताओं की भूमिका न केवल किसान वर्ग के हक की आवाज उठाने में अहम रही है, बल्कि आंदोलनों को दिशा देने और प्रशासन पर दबाव बनाने में भी निर्णायक साबित हो रही है। अब देखना यह है कि प्रशासन किसानों की मांगों पर कब तक और कितना गंभीरता से अमल करता है।


