न्यूज़ प्रिंट,रुद्रपुर- रामलीलाएं भारतीय समाज की अनमोल व प्राचीनतम धरोहर व परम्पराऐं है। रामलीलाओं का मंचन 11वी शताब्दी से पूर्व से होता चला आ रहा है। सर्वप्रथम रामचरितमानस पर आधारित गोस्वामी तुलसीदास के शिष्यों द्वारा रामलीला मंचन प्रस्तुत किया।
रामलीला मंचन लोकनाटक का एक रूप है जिसकी कहानी रचना अति-श्रेष्ठ है जो मनुष्य के हृदय को भाव- विभोर करने वाला व सम्यक जीवन दृष्टि प्रदान करने वाला है समाज में मानवता व सार्थक मूल्यो का संदेश देती है बाली, श्री लंका, कनाडा, नेपाल, मारीशस, इंडोनेशिया, द, अफ्रीका आदि देशों में भी इसका मंचन किया जाता है। थाईलैंड में रामायण को राम कि आन कहते है।
प्रभु श्रीराम ने मानव जन्म लेकर आमजन-मानस को यह समझाने का प्रयास किया कि एक मनुष्य का जीवन कैसा होना चाहिए उसे कैसे अपने धर्म पर चलते हुए अपना जीवन कैसे जीना चाहिए व किन किन समाजिक, परिवारिक व आध्यात्मिक मुल्यो को ग्रहण कर मनुष्य के जीवन को कैसे आदर्श व श्रेष्ठ बनाया जा सकता है। राम लीलाओं में इन सब गुणों को आदर्श व मर्यादित रुप में आत्मसात कर सीख लेकर मनुष्य,मानव से देवत्व गुणों को प्राप्त कर सकता है।
प्रभु राम का जीवन आमजन-मानस से जुड़ा होने के कारण प्रेरणादायक है। बाल्यकाल से गुरू कुल की कठिन दिनचर्या, तपस्चर्या व योग व शिक्षा व अनुभव से जुड़ा था। जिससे उन्होंने चौहद साल के कठिन वनवास व माता-पिता के आज्ञापालन को सहर्ष ही स्वीकार किया और वनगमन किया वनपथ पर मल्लाह केवट, निषाद राज गुह, प्यारे सेवक हनुमान, भीलजाति की बन-वासिनी शबरी व भालू,वानर, गिलहरी जैसें निरीह जीव जन्तुओं प्राणियों को अपना स्नेह व सानिध्य प्रदान किया।
राम धैर्यवान, बुद्धिमान,नैतिज्ञ,सत्यप्रतिज्ञ, जितक्रोध,गुरूसेवक, आदर्श पुत्र, आदर्श भाई, आदर्श पति,नीतिवान नृपति, शौर्यवान प्रिय-दर्शन आदि गुणों से युक्त है। प्रभु श्रीराम आदर्श महामानव व महानायक के रूप में प्रस्तुत किया गया है ।प्रभु श्रीराम के आदर्श गुणों व जीवन चरित्र को को अपने जीवन में उतारकर मनुष्य अपना जीवन सार्थक कर सकता है ।