उत्तराखंड होम्योपैथिक बोर्ड पर मनमानी और विलंब का आरोप, शासन से त्वरित हस्तक्षेप की मांग
रुद्रपुर। उत्तराखंड का शिक्षा और चिकित्सा क्षेत्र तभी प्रगति करेगा, जब संस्थाओं से निकलने वाले छात्रों का भविष्य सुरक्षित हो। लेकिन चंदोला होम्योपैथिक मेडिकल कॉलेज के बी.एच.एम.एस. सत्र 2018-19 के छात्र-छात्राओं को अपनी एक वर्षीय अनिवार्य इंटर्नशिप के लिए आवश्यक अनंतिम/अस्थायी पंजीकरण प्राप्त करने में गंभीर अड़चनें आ रही हैं। कॉलेज प्रशासन ने सभी नियमों और दस्तावेजों के साथ शासन और आयुष चिकित्सा अनुभाग को आवेदन किया, लेकिन उत्तराखंड होम्योपैथिक बोर्ड के रजिस्ट्रार डॉ. शैलेन्द्र पांडेय द्वारा अनावश्यक विलंब किया जा रहा है। छात्रों में ‘काउंसलिंग’ और ‘गैर-काउंसलिंग’ के आधार पर भेदभाव की शिकायत भी सामने आई है, जबकि ऐसा कोई प्रावधान न तो बी.एच.एम.एस. विनियम, 1983 में है और न ही राष्ट्रीय होम्योपैथी आयोग के नियमों में। कॉलेज प्रशासन ने यह भी उजागर किया कि रजिस्ट्रार पद का दुरुपयोग कर मनमानी कर रहे हैं।

छात्रों के बीच यह चर्चा भी आम है कि पंजीकरण प्रक्रिया में अनावश्यक विलंब के नाम पर अनुचित आर्थिक लाभ की मांग की जा रही है। छात्र-छात्राएं मानसिक तनाव और असुरक्षा का सामना कर रहे हैं। संस्थान ने शासन से तीन प्रमुख मांगें उठाई हैं कि सभी छात्रों को बिना भेदभाव तत्काल पंजीकरण प्रदान किया जाए। साथ ही इंटर्नशिप प्रक्रिया को शीघ्र प्रारंभ कराया जाए और रजिस्ट्रार की मनमानी और विलंब की निष्पक्ष जांच कर आवश्यक कार्रवाई की जाए। विशेषज्ञों का कहना है कि यदि शासन ने समय रहते हस्तक्षेप नहीं किया तो यह न केवल छात्रों के करियर को प्रभावित करेगा बल्कि राज्य की चिकित्सा शिक्षा व्यवस्था पर भी जनता का विश्वास संकट में पड़ जाएगा।
उत्तराखंड के युवाओं के भविष्य और राज्य की चिकित्सा शिक्षा व्यवस्था की सुरक्षा अब शासन-प्रशासन की जिम्मेदारी बन चुकी है।
‘न्यूज प्रिन्ट ने डॉं चंदोला से फोन पर बात की। बातचीत में डॉ. चंदोला ने कॉलेज की छात्राओं के साथ छेड़छाड़ और बदसलूकी करने का भी आरोप लगाया। साथ ही रुपए मांगने का भी आरोप है।’



