जनता कार्यों की हकीकत को समझे, किसी के बहकावे में न आएं
शिवम शर्मा, न्यूज प्रिन्ट
रुद्रपुर। सड़कों और सार्वजनिक स्थलों पर फैले अतिक्रमण को हटाना प्रशासन की एक सामान्य प्रक्रिया है, लेकिन इन दिनों यह प्रशासनिक कार्रवाई भी राजनीतिक रंग ले चुकी है।
नेताओं में इस ‘सामान्य प्रक्रिया’ को लेकर श्रेय लेने की होड़ मच गई है, जिससे आम जनता भ्रमित हो रही है कि आखिर विकास किसका एजेंडा है? किसी भी शहर के प्रमुख बाजारों और चौराहों पर जब प्रशासन की टीम अतिक्रमण हटाने पहुंचती है, तो कुछ ही देर में क्षेत्रीय नेता वहां अपनी उपस्थिति दर्ज करवा देते हैं। कोई माइक थामे दावा करता है कि यह कार्रवाई मेरी मांग पर हुई है, तो कोई सोशल मीडिया पर लाइव जाकर जनता से कहता है कि आपके हितों की रक्षा के लिए मैंने प्रशासन पर दबाव बनाया।
अक्सर देखा गया है कि जिन नेताओं ने वर्षों तक अतिक्रमण पर चुप्पी साधी थी, वही फोटो खिंचवाकर प्रचार में जुट जाते हैं। आम जनता का मानना है कि, अगर शासन-प्रशासन पहले ही अतिक्रमण रोकने में रुचि लेते तो हालात इतने बिगड़ते ही नहीं।
अब जब प्रशासन अपनी नियमित कार्रवाई कर रहा है, तो यह प्रचार की वस्तु क्यों बन गया? एक प्रशासनिक अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया, हमारी टीम अलग-अलग क्षेत्रों में अतिक्रमण हटाने का अभियान चलाती है। यह एक निर्धारित प्रक्रिया है, जिसका किसी राजनीतिक दबाव से लेना-देना नहीं होता। उन्होंने यह भी जोड़ा कि नेताओं के दावे अक्सर लोगों को गुमराह करते हैं और टीम की निष्पक्षता पर सवाल खड़े करते हैं। जानकारों का मानना है कि जब मूलभूत प्रशासनिक कार्यों को भी राजनीतिक चश्मे से देखा जाने लगे, तो विकास की दिशा भटकने लगती है। अतिक्रमण हटाना शासन-प्रशासन की जिम्मेदारी है, न कि किसी एक पार्टी या नेता की उपलब्धि। अगर इसमें राजनीति घुसेगी, तो निष्पक्षता और प्राथमिकताएं दोनों प्रभावित होंगी।
ऐसे में जनता को चाहिए कि वह कार्यों की हकीकत को समझे और किसी नेता की सिर्फ फोटो या वीडियो देखकर भ्रमित न हो। वहीं, नेताओं को भी चाहिए कि श्रेय की राजनीति छोड़कर योजनाओं की निगरानी और जनसंपर्क में योगदान दें, न कि कैमरे के सामने आकर खुद को मसीहा साबित करें।
क्योंकि ऐसा करना सामाजिक रूप से न तो सही है और न ही स्वच्छ राजनीति का हिस्सा।